गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

एक कहानी यह भी है .............

डॉ. लाल रत्नाकर 

मा.एल. नाथ वैसे कहने को तो समाजवादी था पर वोट हमेशा सांप्रदायिक पार्टी को देता था क्योंकि उस पार्टी का कंडीडेट उसकी विरादरी का होता था, वैसे तो प्रजा और राजा वाला उसका आचरण अच्छा तो नहीं लगता था लेकिन चूँकि वह शिक्षक संगठन का जुगाडू प्रतिनिधि बन बैठा था और सबसे करीबी दिखाता था तो कभी कभार उसकी तरफ भी हो लेने का मन ना  होते हुए भी डॉ.बांगड़ू निकल ही जाता था उसके घर की ओर .

संयोग था डॉ.बांगड़ू को भी नाइ से बाल ठीक कराने के लिए जाना था जब नाई के यहाँ पहुंचा तो आस पास के झुग्गी के बच्चो की लाईन लगी थी इतने सबेरे इतनी बड़ी बाल कटाने वालों  की लाईन देख डॉ.बांगड़ू  को कुछ समझ ना आया मोबइल में देखा अभी सात भी नहीं बजे थे, मा. एल. नाथ से मिले भी काफी दिन हो गए थे सो गाड़ी स्टार्ट किया और उसी मोहल्ले में रह रहे तथा कथित समाजवादी मा.एल.नाथ के यहाँ पहुँच गया, प्रदेश के समाजवादी शिक्षक संस्था के महामंत्री, अध्यक्ष और शहर के तथाकथित नेतानुमा एकाध उसके जी हुजूरी करने वाले इतने सुबह वहां मौजूद थे .

डॉ.बांगड़ू  की नयी कार देख नेता नुमा मा.एल.नाथ बौखलाहट में बोला  कहाँ मंगनी की कार लेकर घूम रहे हो, डॉ.बांगड़ू  बोला आई.सी.आई.सी.आई. की है, चहिये तो आपके लिए भी इंतजाम करूँ ''गांड में लोहा डाल के तुम्ही घूमों" मुहं पिचकाते हुए मा.एल.नाथ पजामे का नाडा कसने लगा और बोला अभी तो हम जल्दी में है कहीं जा रहे है, इतने में भीतर से सूबे के क्रांतिकारी दुबे जी ने बाहर निकलते हुए कहे डॉ.बांगड़ू  कहाँ हो मै कल से ही खोज रहा हूँ, मा.एल.नाथ तो कह रहे थे कहीं गए हो, यह सुन मा.एल.नाथ लाल पिला होने लगा डॉ.बांगड़ू मा.एल.नाथ की ओर देखते हुए बोला हा हा आजकल जरा इनका दरबार नहीं लगा पा रहा हूँ. 
दुबे जी आ  हा हा हा ......कार कर कहने लगे इनके कौन है दरबारी  कल के मीटिंग में तो इनके साथ कोई था ही नहीं, अलबत्ता करना अपनी गाड़ी में पिपिया के साथ दुखपाल और बैरागी को भर कर लाया था एक और कोई था जो काला चश्मा रात में भी पहने था, 

डॉ.बांगड़ू  चलो दिल्ली में राष्ट्रीय बैठक चल रही है, मैंने पत्र तो  शिक्षक संस्था के मंडलीय  महामंत्री मा.एल.नाथ को भेजा भी था और फोन पर भी कहा था, तुम्हारी टीम का कोई नज़र ही नहीं आया मा.एल.नाथ कह रहा था तुम लोगों का पता ही नहीं है, डॉ.बांगड़ू  तपाक से बोला जो ये नेता बनाये है ये जनता का नेता नहीं है, इसके दरबारी सारे पूंजीवादी, सांप्रदायिक और चमचे है उनको यह सारे ठेके दिलाता है ............... वो गए तो रहे होंगे ..?

राधेश्याम सर पर तेल मलते हुए चड्ढी बाहर धूप में फ़ैलाने के लिए निकले डॉ.बांगड़ू  खड़ा होकर अध्यक्ष जी नमस्कार अरे भाई डॉ.बांगड़ू  जी कहाँ है कल से ही आपकी खोज हो रही है मा.एल.नाथ फिर तिलमिलाया दुबे जी जल्दी तैयार होईये भाई साहब का ड्राईवर आ रहा है .
अध्यक्ष बोले - मा.एल.नाथ इन्हें ले चलो ....!
मा.एल.नाथ अचकचाता हुआ ... अध्यक्ष जी जल्दी कपडे पहनिए, अध्यक्ष राधेश्याम अरे भाई डॉ.बांगड़ू  आप भी तैयार होकर तो आये ही है आईये दिल्ली चलते है ..
मा.एल.नाथ खिसियाते हुए तो आप इनको लेकर आईयेगा हम तो जा रहे है, चलिए दुबे जी नास्ता करते है, अध्यक्ष और  डॉ.बांगड़ू  अवाक्.... नहीं अध्यक्ष जी आप जाईये मै तो बाल कटाने आया था नाइ के यहाँ भीड़ थी सो यहाँ आ गया संयोग था आप सब से मुलाकात हो गयी, कहाँ है मीटिंग  मौका निकाल कर मै आ जाऊंगा . बंग भवन .

डॉ.बांगड़ू नाई के यहाँ गया बाल कटाया पटरी की गुमटी के सामने नयी कार ओ भी थोड़े ऊँचे मोडल की नाई भी जरा साफ सा कपड़ा निकाला और डॉ.बांगड़ू के गले में लपटते हुए कहा काफी दिनों के बाद आना हुआ , डॉ.बांगड़ू  बोला काफी फसा हुआ था, नाई बोला मोहल्ले वाले मास्टर जी भी  आजकल नज़र नही आ रहे है , डॉ.बांगड़ू  बताया अभी मै वही से आ रहा हूँ जरा आजकल कुछ मेहमानों में घिरे है , मैंने उनसे नगरायुक्त से एक गुमटी के लिसेंस के लिए कहा था तब से आना ही छोड़ दिये, आपकी बात मानते है साहब मेरा लाइसेंस का कह कर करा दीजिये ! अरे भाई ओ किसी की बात नहीं मानते तुम्हे क्या लगा उनके कहने से काम हो जायेगा , वो पान वाला यादव कह रहा था नगरायुक्त इनके यहाँ आते जाते रहते है , एक बार और बोल के देख ले .

डॉ.बांगड़ू घूमते घामते बंग भवन पहुच गया, राष्ट्रीय अधिवेशन जहाँ सारे देश के शिक्षकों का जमावड़ा संगठन की संरचना का गहमी गहमा शिक्षकों का चंदा खा गए नेताओं की पद हथियाने की कवायद उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम हर रूप रंग के स्त्री व् पुरुष छुपे हुए एजेंडे , पर हर एक पर अविश्वास एक कोने में माँ. एल. नाथ सूबे के अध्यक्ष को जी भर कर गरिया रहा था पर दुबे जी कुछ बोल नहीं रहे थे एक तरफ विशाल साम्राज्य का शेर अपनी वीमारी से थका हारा रेसप्सन के सोफे पर आराम भी नहीं कर पा रहे थे कोई आकर कुछ कान में फुसुर फुसुर कर रहा है जो सुनायी दे रहा था उसमे अंतिम याचना संगठन में किसी न किसी पद की ही थी . मा.एल.नाथ कहीं से घूमते घामते आ गया, गुस्से में  तम तमाया बोला दुबे जी देख लीजियेगा मै संगठन नहीं चलाने दूंगा देखूंगा किसकी क्या औकात है पर दुबे जी जैसे मा.एल.नाथ को जैसे सुन ही नहीं रहे हों .

सूबे के अध्यक्ष राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाये गए थे जिसका संज्ञान दुबे जी को पहले से ही था या यूँ कहें की यह पद भी दुबे जी की अनुकम्पा का परिणाम ही था , माँ. एल. नाथ यह बात अच्छी तरह जानता था पर दुबे जी इसकी हरकत और औकात जानते थे , पर इतना जरुर था की अब मा.एल.नाथ से दुखी रहने लगे थे , एक और था जो दिखाने को तो बहुत भारी नेता था पर खाने पिने के कारण बीमार रहने लगा था उसे लोग प्यार से प्रोफ. पिपिया के नाम से ही पुकारते थे इस पर भी दुबे जी की दया दृष्टि थी यह बात मा.एल.नाथ को बहुत खलती थी. 

पिछले दिनों एक घटना घटी मा.एल.नाथ जो पार्टी का एस.जी . भी था पर जहाँ काम करने आया था वहां के संगठन वालों ने इस मा.एल.नाथ की प्राथमिक सदस्यता ख़त्म कर दी जिसकी खबर सभी समाचार पत्रों में छपी मा.एल.नाथ जानता था इसके पीछे किसका हाथ है इसी से वह प्रोफ.पिपिया से खूब चिढ़ता था, पिपिया भी उसी फर्जी इंचार्ज के साथ था जिसका कर्मचारी मा.एल.नाथ था पर इसमे कौन सी गोट कौन चल रहा है पता नहीं चल रहा था . जिस सभा में मा.एल.नाथ को निकाला जा रहा था उसमे केवल और केवल कोई नहीं था तो वह डॉ.बांगड़ू और उसकी टीम . मा.एल.नाथ के सारे चमचे वहाँ मौजूद थे पर किसी ने चूं तक नहीं किया था .


अभी - अभी खबर आई है की मा.एल.नाथ  एक खबर लेकर आया की आज इस संस्था 


(टीप - रचना में दिए गए स्थान व व्यक्तियों के नाम पूर्णतः काल्पनिक हैं, और किसी जीवित-मृत व्यक्ति से संबंधित नहीं हैं) 

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