डॉ.लाल रत्नाकर यह कहानी 'कहते हुए 'न' तो आनंद आएगा, 'न' दुःख होगा , न किसी को इसमें छेड़ा गया है, पर ये कहानी एक ऐसी कहानी है जिसमे एक पढ़े लिखे आदमी की कथा है जिसे इतने हथकंडे आते है जिससे वह इतना माहिर था जितना कि कोई भी शातिर से शातिर अपराधी भी नहीं कर पाते है, जितना दिखाई देता है उससे कई हज़ार गुना शातिरपन उसमें है | पर वह हमेशा भोला भाला दिखाई देगा, देखकर किसी को नहीं लगेगा की यह इतना बड़ा अपराधी भी होगा | कहानी का आज दयाल साहब रोज की तरह देर से आये है , डॉ. कानिया उन्हें सबूत आँख से तरेरने की हरकत की तैयारी करते से सकुचाये हुए अजीब सा मुह बनाते है, तभी दुखी राम बोल पड़ते है डॉ.दयाल आ गए यही क्या कम है डॉ.कानिया,..........डॉ.दयाल गुस्से में क्या कह रहा है यह कंचोदा......कानिया ही ही करते हुए अरे भाई मै तो कुछ कहाँ कह रहा हूँ, फिर डॉ.दयाल साले मै जानता हूँ तुम्हारी हरामगिरी तुम्हे दिखाई तो देता नहीं कहाँ गय...
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