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आपरेशन सिंदूर का सच क्या है ?

भारत और पाकिस्तान के मध्य आतंकवादी और पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर जो कार्यवाही हुई उसको लेकर जो सारी कार्यवाही हुई उसे आपरेशन सिंदूर नाम दिया गया।  इसी को जानने के लिए gork ai से पूछा आपरेशन सिंदूर का सच क्या है ? जो उत्तर आया यथावत यहाँ डाला जा रहा है - आपरेशन सिंदूर का सच क्या है ? आपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) 7 मई 2025 को भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (PoJK) में आतंकवादी ढांचे पर किए गए एक सैन्य अभियान का कोडनेम था। यह अभियान 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में शुरू किया गया, जिसमें 26 लोग मारे गए थे, जिनमें 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिक शामिल थे। इस अभियान का नाम "सिंदूर" इसलिए चुना गया, क्योंकि यह पहलगाम हमले में विधवा हुई महिलाओं के दुख और सम्मान की रक्षा के प्रतीक के रूप में देखा गया, क्योंकि सिंदूर हिंदू परंपरा में विवाहित महिलाओं का प्रतीक है।[](https://www.nytimes.com/2025/05/07/world/asia/india-operation-sindoor-name.html)[](https://shop.ssbcrack.com/blogs/blog/what-is-operation-sind...

उम्मीद है कि मंगल गीत की तरह लगेंगी वो गालियां

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(जनतंत्र  से  साभार) प्रोफ़ेसर काशी नाथ सिंह हिन्दी के बेहतरीन लेखक हैं। ज़रुरत से ज्यादा ईमानदार हैं और लेखन में अपने गांव जीयनपुर की माटी की खुशबू के पुट देने से बाज नहीं आते। हिन्दी साहित्य के बहुत बड़े भाई के सबसे छोटे भाई हैं। उनके भइया का नाम दुनिया भर में इज्ज़त से लिया जाता है। और स्कूल से लेकर आज तक हमेशा अपने भइया से उनकी तुलना होती रही है। उनके भइया को उनकी कोई भी कहानी पसंद नहीं आई। अपना मोर्चा जैसा कालजयी उपन्यास भी नहीं। यह अलग बात है कि उस उपन्यास का नाम दुनिया भर में है। कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है ‘ साठ और सत्तर के दशक की छात्र राजनीति पर लिखा गया वह सबसे अच्छा उपन्यास है। काशीनाथ सिंह फरमाते हैं कि शायद ही उनकी कोई ऐसी कहानी हो जो भइया को पसंद हो लेकिन ऐसा संस्मरण और कथा-रिपोर्ताज भी शायद ही हो जो उन्हें नापसंद हो। शायद इसीलिये काशीनाथ सिंह जैसा समर्थ लेखक कहानी से संस्मरण और फिर संस्मरण से कथा रिपोर्ताज की तरफ गया। उनके भइया भी कोई लल्लू पंजू नहीं, हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष डॉ नामवर सिंह हैं । नामवर सिंह ने काशी में आठ आने रोज़ पर भी ज़िंदगी ब...

रेखा के जन्म दिन १० अक्टूबर पर जन्मदिन के मुबारक बाद के साथ -

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डॉ.लाल रत्नाकर  कहानी की दुनिया में नाना प्रकार के चरित्र चित्रित किये जाते है जिससे कहानी के विविध रूप हमें दिखाई देते है उसी में से उमराव जान की कहानी भी है जिसका फ़िल्मी करन मुज्जफ्फर अली साहब ने किया है, जिसमे रेखा ने उमराव जान का किरदार अदा की है - Oct 10, 12:29 am नहीं खींची जा सकी कोई दूसरी रेखा बताएं जिन लोगों को अवध की कला और संस्कृति के बारे में जानकारी नहीं होती है, उन्हें फिल्म उमराव जान देखने की नसीहत दी जाती है। वजह है कि जिस खूबसूरती से रेखा ने उमराव जान का किरदार निभाकर अवध की तहजीब और संस्कृति की नजीर पेश की है वह दूसरों के लिए मिसाल बन गई। कभी-कभी कोई फनकार फसानों को भी हकीकत की शक्ल दे देता है। रेखा ने यही काम 'उमराव जान' के साथ किया है। अब इसके बाद तो कोई चाहकर भी यह नहीं चाहता कि कोई इसे फसाना कहे। फिल्म के निर्देशक मुजफ्फर अली फरमाते हैं कि जबउमराव जान पर फिल्म बनाने की योजना बनी तो मेरे दिमाग में दो ही कलाकार थे, एक स्मिता पाटिल और दूसरी रेखा। काफी दिनों तक उमराव जान के कैरेक्टर को ध्यान में रखकर सोचने के बाद सिर्फ रेखा का ही नाम जेहन में ...

क्या कमाल का प्रिंसिपल है !

डॉ.लाल रत्नाकर मुझे याद है जब मै इस शहर के एक बड़े कालेज में ज्वाइन किया था तब पता चला की यह साहब फला सिंह है और इनकी कोचिंग टॉप पर है, यह ज्यादा समय अपने कोचिंग में ही ब्यस्त रहते है , उन दिनों उस विभाग में कई लोग इस अतरिक्त पेशे में लगे हुए थे,पर वह अपनी कालेज की क्लासेस भी लेते थे, पर फला सिंह कभी क्लास में जाते ही नहीं थे, यह बात तब पता चली जब उसी विभाग के श्री रायसाहब ने यह बताया की यह ससुरा कभी कालेज में क्लास लिया हो तब तो जाने की कालेज क्या होता है, प्रिंसिपली करने चला आया है. 

वाह रे नेता जी !

डॉ.लाल रत्नाकर नेता जी ने गुंडागर्दी के बल पर मास्टरी पाई की नहीं पाई यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना यह की 'एक गुंडा जो मास्टर बन जाय और पूरे शिक्षा तंत्र में अपने इसी रूप और संस्कार को व्यवस्था का हिस्सा बना दे' कुछ ऐसा ही एक नेता हमारी जानकारी में आया है, उसके जिस जिस से सम्बन्ध रहा है उसकी स्थिति अच्छी नहीं रही है या तो वह आज नौकरी में नहीं है या मुकदमे झेल रहा है, इस बीच उस नेता के चक्कर में जो भी आया उसे वह चूना जरुर लगाया. चरित्र लिखवाने से लेकर अपने चरित्रहीनों को बचाने तक का सारा काम नेता जी को खूब रास आता है नेता है तो गाली गलौज तो करेगा ही.

यह ब्लॉग कहानी के लिए है पर जो कहानी 'अदम गोंडवी के इस गीत में है' पढ़िए -

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मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को                                              मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर मर गई फुलिया बिचारी कि कुएँ में डूब कर है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा मैं इसे कहता हूँ सरजूपार की मोनालिसा कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में क्या पता उसको कि कोई भेड़ि़या है घात में होनी से बेख़बर कृष्ना बेख़बर राहों में थी मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई छटपटाई पहले, फिर ढ...

कालेज का हेडमास्टर/प्रिंसिपल/प्राचार्य

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डॉ.लाल रत्नाकर    यह कहानी 'कहते हुए 'न' तो आनंद आएगा, 'न' दुःख होगा , न किसी को इसमें  छेड़ा गया है, पर ये कहानी एक ऐसी कहानी है जिसमे एक पढ़े लिखे आदमी की कथा है जिसे इतने हथकंडे आते है जिससे वह इतना माहिर था जितना कि कोई भी शातिर से शातिर अपराधी भी नहीं कर पाते है, जितना दिखाई देता है उससे कई हज़ार गुना शातिरपन उसमें है | पर वह हमेशा भोला भाला दिखाई देगा, देखकर किसी को नहीं लगेगा की यह इतना बड़ा अपराधी भी होगा  |                                    कहानी का   आज दयाल साहब रोज की तरह देर से आये है , डॉ. कानिया उन्हें सबूत आँख से तरेरने की हरकत की तैयारी करते से सकुचाये हुए अजीब सा मुह बनाते है, तभी दुखी राम बोल पड़ते है डॉ.दयाल आ गए यही क्या कम है डॉ.कानिया,..........डॉ.दयाल गुस्से में क्या कह रहा है यह कंचोदा......कानिया ही ही करते हुए अरे भाई मै तो कुछ कहाँ कह रहा हूँ, फिर डॉ.दयाल साले मै जानता हूँ तुम्हारी हरामगिरी तुम्हे दिखाई तो देता नहीं कहाँ गय...